5-अनिता मण्डा
1
अब जगे हो
बनके बुद्ध
तुम !
पर ये देखो
सोई न
यशोधरा
जब से गए
तुम।
2
मोतियाबिन्द
वाली
आज तक भी
करती रहती
हैं
रिश्तों की
तुरपन।
3
तुम क्या
जानो
कैसी है
हलचल
जल- भीतर
मारना आता
बस
तुमको तो
पत्थर।
4
गुजरा वक़्त
गुज़रता कब
है
जब भी देखो
ठहरा रहता
है
अपने ही
भीतर।
5
बनके याद
गुजरा वक़्त
लौटा
मेरे भीतर
रेशा -रेशा
उतरा
गया वक़्त न
गया।
6
पाँव के
छाले
तुमको
बताएँगे
मज़ा देती
हैं
सफ़र की
दस्तानें
आजा सुन तो
सही।
7
मुझमें भी
तो
छटपटाके शोर
सोया है अब
यूँ होती
हैं क्या भला
आँखें ख़ामोश
कभी।
8
देखो किरणें
रोशनी के
गाँव से
आई जगाने
अँधेरे को
हराने
चल धीमे
पाँव से।
9
चाँदनी सोई
मोगरे
के पुष्प पे
या रात रोई
किरन- परस से
पोंछे है
आँसू कोई।
10
ताज- आँगन
कितने ही
हाथों की
ओढ़ के आहें
मुमताज़ सोई
है
धवल रोशनी
में।
-0-
6-कृष्णा वर्मा
1
आ सहला दूँ
नसीब तेरे
पाँव
दुखते
होंगे
मार-मार
ठोकरें
रोज़ मेरे
ख़्वाबों को।
2
हो जातीं
काश
यादें भी
ध्यानमग्न
हो जाती
मेरे
दिल की
हलचल
थोड़ी सी शान्त
स्थिर।
3
मिले एकांत
भीतर रो लेना औ
बाहर शांत
सीख लो पर्दादारी
इन दरियाओं से।
4
मौन मुखर
दरका प्रतिपल
रिसने लगा
पलकों की कोरों से
पीड़ाओं का ये भार।
5
तेरी नसलें
बोएँगीं कब
तक
पीड़ा फसलें
तोड़ के मौन
व्रत
रच कुछ तो नया
।
5
भले लोग भी
हैं बड़े
ज़माने में
टोह के
देखो
प्यार भरी
गुहार
ज़रा लगा के
देखो।
6
रिश्ते ना
कोई
सजावटी
सामान
ले लें काम
में
मौके औ
ज़रूरत
या निज
हिसाब से।
7
देखा ख़्वाब
में
सावन का
त्योहार
पिया ना
पास
मन मेघा
घुमड़े
बरसी नैन
धार।
8
उठे लहर
दर्द –सरोवर में
फिर ना आए
जल्दी –सा ठहराव
मौजों के
उछाल में।
-0-
7-डॉ०पूर्णिमा राय
1
महकी साँसें
मिलन की घड़ियाँ
भीनी सुगन्ध
कुदरती नज़ारा
धरती-
मिलन का!!
2
बरसता है
सावन का उन्माद
मनमोहक
सजीले नैन-
बाण
प्रेम बौछार करें
!!
3
मन बेचैन
रिमझिम बारिश
याद सताए
रूह से मिले जिस्म
परछाईं अलोप!!
-0-
8- सविता अग्रवाल 'सवि'
1
बंद अँखियाँ
नन्हे –नन्हे से हाथ
मुख है शांत
लगती मुझे प्यारी
कोमलांगी गुड़िया
-0-
((चित्र गूगल से साभार)
((चित्र गूगल से साभार)
14 टिप्पणियां:
अम्मा की ऑंखें ......संवेदना जगाता ताँका ,मौन - मुखर .......,मन बेचैन ....., बंद अँखियाँ....., सभी
बहुत सुंदर हैं अनिता जी , कृष्णा जी पूर्णिमा जी वा सविता जी को बधाई|
पुष्पा मेहरा
सभी की कलम लाजवाब बोलती है .
सभी को बधाई
मेरे ताँका को यहाँ स्थान देने हेतु आभार।
कृष्णा जी सारे ताँका अच्छे मौन मुखर विशेष।बधाई।पूर्णिमा जी
मन बैचेन बहुत अच्छा लगा बधाई।सविता जी नन्ही गुड़िया अच्छा लगा।बधाई
मेरे एक तांका को यहाँ स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार |अनिता जी, कृष्णा जी और डॉ पूर्णिमा जी आप सभी ने ह्रदय में उठती भावों की लहरों में गोते लगाते सुन्दर तांका की रचना की है हार्दिक बधाई |अनीता जी का तांका अम्मा की आखें .... बहुत मन भावन है |
वाह…अतिसुन्दर ताँके!
सुकवयित्री अनिता मण्डा जी का यह ताँका 'उत्तरदायित्व विहीन नई पीढ़ी' का यथार्थ प्रस्तुत करता है-
अम्मा की आँखें
मोतियाबिन्द वाली
आज तक भी
करती रहती हैं
रिश्तों की तुरपन!
तो वहीं समर्थ कवयित्री डॉ. पूर्णिमा राय का यह ताँका भी अतिप्रभावी है, जिसमें मानवीय सम्बंधों के माध्यम से दृष्टि व्यापक सृष्टि तक पहुँचती है-
महकी साँसें
मिलन की घड़ियाँ
भीनी सुगन्ध
कुदरती नज़ारा
धरती- मिलन का!
अनीता जी का ये तांका दर्द की इन्तहां को अभिव्यक्त करने के साथ
वक्त के लम्हों को समेटने की छटपटाहट की मुँह बोलती तस्वीर पेश करता है।
गुजरा वक़्त
गुज़रता कब है
जब भी देखो
ठहरा रहता है
अपने ही भीतर।
कृष्णा जी का तांका जीवन दर्शन को पेश करता है ।
सुख दुख का मेला ये जीवन बहुत आकर्षित करता है ।....
बधाई अनीता जी व कृष्णा जी!
उठे लहर
दर्द –सरोवर में
फिर ना आए
जल्दी –सा ठहराव
मौजों के उछाल में।
-0-
आभार डॉ०शैलेश जी ,सविता जी आपको भी बधाई सुन्दर सृजन!!
वाह वाह बहुत बहुत सुन्दर तांका सभी के अनीता जी आपने कमाल के तांका कहे हैं बहुत बहुत सुन्दर भाव।
कृष्णा जी बहुत सुन्दर।
पूर्णिमा जी बहुत खूब।
सविता जी वाह।
सभी को बधाई
kya baat hai ! jis rachna ko padhe vahi prabhaavi ....anita ji ,aapke buddh banke v amma ki aankhe tatha krishna ji ka aa paanv sahla doon v teri naslen saath hi purnima ji ki ....mahkee saanse aur savita ji ki gudiya ye sabhi rachnayen samvednao ko jagratvastha mein le aayeen hain......abhaar sunder rachnayen padhvaanen ke liya aap sabhi pyare rachnakaaron ka !
बहुत सुन्दर ताँका सृजन.....अनीता जी, पूर्णिमा जी, सविता जी, हार्दिक बधाई।
bahut bhaavpravan rachanaayen ...hardik badhaii sabhi ko !
अम्मा की आँखें
मोतियाबिन्द वाली
आज तक भी
करती रहती हैं
रिश्तों की तुरपन।
कितनी मार्मिक...बधाई...|
आ सहला दूँ
नसीब तेरे पाँव
दुखते होंगे
मार-मार ठोकरें
रोज़ मेरे ख़्वाबों को।
एक दर्द को व्यंग्यात्मक रूप से इतनी सुन्दरता से प्रस्तुत किया है...बधाई...|
डॉ. पूर्णिमा राय और सविता अग्रवाल के तांका भी बहुत पसंद आए...| आप दोनों को भी हार्दिक बधाई...|
अम्मा की आँखें
मोतियाबिन्द वाली
आज तक भी
करती रहती हैं
रिश्तों की तुरपन।
Bahut achha laga rishton par likha ye tanka..bahut bahut badhai..
मिले एकांत
भीतर रो लेना औ
बाहर शांत
सीख लो पर्दादारी
इन दरियाओं से।
Bahut gahan abhivyakti bahut bahut badhai...
sabhi rachnakaron ko bahut bahut badhai sabhi ne bahut achha likha...
अनीता एवं कृष्णा जी... आपके ताँका ने कमाल कर दिया ! दर्द को भी लाजवाब कर दिया! इतनी ख़ूबसूरत और गहन अभिव्यक्ति के लिए ह्रदय से आपको बधाई!
डॉ पूर्णिमा जी एवं सविता जी... आपके ताँका भी बहुत सुंदर लगे!
हार्दिक बधाई आपको!
~सादर
अनिता ललित
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