कृष्णा वर्मा , रिचमण्ड हिल (कनाडा)
1
क्यों छेड़े ऐसी तान
सुध-बुध बिसरा
दौड़ें गोपियाँ
अदृश्य डोर- संग
वशीभूत हो जाएँ।
2
वंशी यूँ कहे-
‘लग श्याम अधर
गया जन्म सुधर
मैं तो थी बाँस
भरी हरि ने साँस
बजे सुर औ’ साज।
3
पगली राधा
सुन वंशी की तान
खोती जाए है प्राण
दौड़ी मधुबन
पूछे वृक्ष औ पात
कहाँ लुके हैं कांत।
4
माखन चोर
माथे मोर- मुकुट
पाँव में पैंजनियाँ ,
मोहती मन
माथे बिखरी लट
अधर-मधु -घट।
5
होतीं अधीर
यमुना जी के तीर
श्री चरण पखार
पाएँ आशीष
दौड़ें गोपियाँ- ग्वाल।
6
ओ नटखट
चंचल चितवन
हरे मन का चैन
श्यामल तन
दमके हैं कुण्डल
किया मन बेकल।
-0-
7 टिप्पणियां:
भक्तिमय सेदोका ...वाह सभी एक से बढ़ कर एक -----बहुत बधाई आपको
वाह ! कितने भावप्रवण सेदोका और कितना सुंदर शब्द-संयोजन ! पढ़कर आनंद आ गया कृष्णा वर्मा जी ! बहुत-बहुत बधाई इस मोहक सृजन के लिए!
सभी सेदोका बहुत सुंदर ...श्री कृष्ण की लीलाओं को साकार करते हुए से ...मोहक प्रस्तुति ...बहुत बधाई कृष्णा वर्मा जी
भक्ति-भाव से सराबोर हैं कृष्णा जी के ये सेदोका. बधाई!
बहुत सुन्दर...। कृष्णा जी को मेरी बहुत बधाई...।
सुन्दर प्रस्तुति, कृष्णा जी को बधाई.
Sundar prastuti...
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