शशि पाधा
1
ओढ़ी किसी ने
वसंती चुनरिया
लहँगा लहरिया
न रोके कोई
फूलजड़ी देहरी
आ गए साँवरिया ।
2
लो तुम सुनो-
सजी स्वर लहरी
साँसों की रुनझुन
लो तुम पढ़ो -
चितवन लिखे जो
नैनों की सरगम ।
3
तुम आओ तो
कह दें चाँदनी से
कहीं रुक न जाना
तारों की वेणी
खुली भीगी अलकें
सखि तुम सजाना !
4
किससे कहें
अधरों पे पहरे
नयन भी न बोलें
मौन में मन
पीर भरी गठरी
किधर जाएँ –खोलें ।
5
बैरी सावन
रिमझिम बरसे
मनवा न सरसे
चौबारे खड़ी
बिछे पथ नयना
विरहन तरसे ।
6
कोकिल आए
मधु सुरीले सुर
धुन कोई सुनाए
बगिया झूमे
हिंडोले पवन के
मोरे पी घर आए ।
7
चलो भुला दें
चुभने लगें जब,
इस जग की बातें;
चलो बसा लें
इक नयी दुनिया
भरें सुख- सौगातें ।
रेनु चन्द्रा
1
रात भी बीती
शमा बुझ गई है
इन्तज़ार किसी का,
आँखों -आँखों में
इस क़दर रहा
मुझे सोने ना दिया।
2
महफिल है
रंगीन हैं नज़ारे
सभी लोग हैं यहाँ,
फिर भी आँखें
न जाने किसे सदा
ढूँढती रहती हैं।
3
मौसम भी है
बह रहीं हवाएँ
खुशनुमा है समाँ ,
तो भी जाने क्यों
दिल नहीं लगता
रात भी बीती
शमा बुझ गई है
इन्तज़ार किसी का,
आँखों -आँखों में
इस क़दर रहा
मुझे सोने ना दिया।
2
महफिल है
रंगीन हैं नज़ारे
सभी लोग हैं यहाँ,
फिर भी आँखें
न जाने किसे सदा
ढूँढती रहती हैं।
3
मौसम भी है
बह रहीं हवाएँ
खुशनुमा है समाँ ,
तो भी जाने क्यों
दिल नहीं लगता
आजकल हमारा ।
४
बूँदें पत्तों के
फ़लक पर बैठ
इतरा -सी रहीं हैं,
जानती नहीं-
कि हवाओं के रुख़
बदल-से गए हैं।
-0-
४
बूँदें पत्तों के
फ़लक पर बैठ
इतरा -सी रहीं हैं,
जानती नहीं-
कि हवाओं के रुख़
बदल-से गए हैं।
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10 टिप्पणियां:
जहाँ शशि पाधा जी के सेदोका अद्भुत भावसौंदर्य लिए हैं वहीं रेनु जी के सेदोका वैचारिक धरातल के अधिक समीप हैं। अति सुंदर! दोनों कवयित्रियों को बधाई !
सभी सेदोका सुन्दर भावपूर्ण
रेनू जी, शशि जी शुभकामनाएं।
कृष्णा वर्मा
बैरी सावन
रिमझिम बरसे
मनवा न सरसे
चौबारे खड़ी
बिछे पथ नयना
विरहन तरसे ।
बूँदें पत्तों के
फ़लक पर बैठ
इतरा -सी रहीं हैं,
जानती नहीं-
कि हवाओं के रुख़
बदल-से गए हैं।
ये तो खूबसूरत हैं ही.. साथ ही सभी बेहद सुन्दर..
ये तो खूबसूरत हैं ही.. साथ ही सभी बेहद सुन्दर..
बैरी सावन
रिमझिम बरसे
मनवा न सरसे
चौबारे खड़ी
बिछे पथ नयना
विरहन तरसे ।
बूँदें पत्तों के
फ़लक पर बैठ
इतरा -सी रहीं हैं,
जानती नहीं-
कि हवाओं के रुख़
बदल-से गए हैं।
शशि जी और रेनू जी के सभी सेदोका बहुत भावप्रवण हैं. आप दोनों को बधाई.
रेनू जी और शशि जी भावों का सुंदर समंदर है आपदोनो के स्दोका में आपदोनो को बधाई
रचना
बूँदें पत्तों के
फ़लक पर बैठ
इतरा -सी रहीं हैं,
जानती नहीं-
कि हवाओं के रुख़
बदल-से गए हैं।
Bahut gaharaai hai is sedoka men,sundar chitran kiya prkrti ka bahut2 badhai..
Sashi ji ko bhi bahut2 badhai unke sedoka bhi khusurat hain...
सभी सेदोका मोहक हैं परन्तु ...
तुम आओ तो
कह दें चाँदनी से
कहीं रुक न जाना
तारों की वेणी
खुली भीगी अलकें
सखि तुम सजाना !...तथा ...
बूँदें पत्तों के
फ़लक पर बैठ
इतरा -सी रहीं हैं,
जानती नहीं-
कि हवाओं के रुख़
बदल-से गए हैं।...का सौंदर्य अप्रतिम लगा ....बहुत बधाई ...
शशि जी के सेदोका में हिन्दी की मनभावन चाशनी मिल रही तो रेनू जी के सेदोका उर्दू की मिठास लिए मन की गहराई तक उतर रहे...। वाह! बहुत अच्छा लगा...। मेरी बधाई...।
आप सभी का आभार।’इन्तज़ार’ सेदोका पसन्द करने एवं मेरा उत्साह वर्धन करने हेतु
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।
रेनु चन्द्रा
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