1-प्रीत साँची हमारी
तुहिना रंजन
नैनों में छिपे
सावन -भादो सब,
बरसा किए
तोहे याद करके ,
मेघा जलाए
बूँदें भी तड़पाएँ
तुम्हरे बिना ,
जिया न लागे हाय !
ओ परदेसी !
बदरा संग भेजूँ
प्रेम की पाती ;
पढ़ते आ जइयो ।
आओगे जब,
लिपट तोसे तब
भीजूँ तो संग
बहे चूनर रंग ,
जाऊँगी वारी ;
प्रीत साँची हमारी ।
भूल न जाना ,
ये बिरहा की मारी
तके राह तिहारी ।
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2-श्यामल मेघ
-डॉ अमिता कौण्डल
श्यामल मेघ
रिमझिम- सी बूँदें
मधु संगीत
भीगा घर आँगन ।
मन बाबरा
गुनगुनाए जैसे
मधुर गीत ।
हृदय आनन्दित
ज्यों माँ -स्नेह से ,
बूँदों की शीतलता
शिशु स्पर्श -सी
वर्षा ऋतु -आनन्द
छाया है चहुँ ओर ।
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ओ घन श्याम !
3- डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
ओ घन श्याम !
मुदित अभिराम
सजल हुए
धरा पर बरसे
और कभी यूँ
मिलने को तरसे ।
कौन सिखाता
सारी तुम्हें ठिठोली ?
सखी तुम्हारी
पुरवाई क्या बोली ?
भटकाती है
संग तुमको लेके
भला कहो तो
कित- कित है जाती
ज़रा तो जानो ।
कण -कण व्याकुल
तुम्हारे बिना
तुम न पहचानो ।
और कभी ये
मुक्त भाव से भला
कौन संदेसा
नदिया से कहते ?
उमड़ी जाती
वो बहते -बहते
सखा हमारे
हमें न भरमाओ
हमें न भरमाओ
अब मान भी जाओ ...!!
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( प्रस्तुति -डॉ हरदीप कौर सन्धु )
4-रसधार से भर !
डॉ सरस्वती माथुर
वर्षा ऋतु में
पात के झरोखों से
झाँकती बूँदे
शाखाओं पे झूमती
पुरवा संग
संगीत हैं बनाती
पाखी स्वरों को
साथ मिला करके
रसीला गातीं
मेघ ढोल बजाते
दामिनी छेड़
ऑर्केस्ट्रा के तारों को
धरा पे आती
बुलबुल- कोयलें
हर ताल पे
खूब साथ निभातीं
भँवरे गाते
फूल तितली-संग
नृत्य दिखाते
रसधार से भर
गुन-गुन हैं गाते ।
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4 टिप्पणियां:
पहली बार पता चला इसे चोका कहते हैं ....
सभी अच्छे लगे भीगे भीगे से ....:))
वर्षा की फुहारों को बरसाती मनोहारी चोका .
बधाई सभी को .
सभी चोका सरस। प्रीत घुली बरखा की फुहारें सुन्दर प्रस्तुती।
कृष्णा वर्मा
बहुत बढ़िया चौके एक से बढ़कर एक सभी रचनाकारों को बधाई
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