-डॉ. अमिता कौण्डल
तुमने कहा -
मैं खुश हूँ बहुत
कहो प्रीतम
कब देखा तुमने
सूरजमुखी
खिलता सूर्य बिना
देखा है कभी ?
प्रियवर तुमने
बिन जल के
मछली को जीवित
तुम ही तो हो
मेरी सारी खुशियाँ
जब से मोड़ा
तुमने मुखड़ा ये
एकाकी हूँ मैं
माटी -रची काठ को
जिन्दा रखा है
कि कभी होगी तुम्हें
मेरी भी सुध
मैं और तुम होंगे
इस जन्म में "हम"
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8 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर लिखा है...अमिता जी को बधाई !!
बहुत सुन्दर...अमिता जी बधाई
"कि कभी होगी तुम्हें
मेरी भी सुध
मैं और तुम होंगे
इस जन्म में "हम"
बहुत मोहक ताँका! बधाई !
दर्द में डूबा भावों का सागर अमिता जी आँख भरने लगी थी मेरी
रचना
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति अमिता जी ....बधाई
व्यथा की गाथा... भावपूर्ण चोका. शुभकामनाएँ.
दिल को छूती एक मार्मिक रचना के लिए मेरी बधाई...।
प्रियंका
आप सभी को यह रचना पसंद आई इसके लिए आप सबका हार्दिक धन्यवाद.
सादर,
अमिता
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