डॉ भावना कुँअर
ये खामोशियाँ
डुबो गई मुझको
दर्द से भरी
गहन औ’ अँधेरी
कोठरियों में।
गूँजती ही रहती
मेरी साँसों में
प्यार -रंग में रंगी
खुशबू भरी
जानी पहचानी -सी
बावरी धुन।
छलिया बन आए
चुरा ले जाए
मेरे लबों की हँसी
दे जाए मुझे
आँसुओं की सौगात
कैसा अजीब प्यार !
9 टिप्पणियां:
बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर चोका ! कल-कल बहती नदी-सा !बधाई भावना जी !
उफ़ क्या सुंदर शब्दों को पिरोया है शायद ऐसा ही है प्यार
बधाई
रचना
मन को छू लेने वाली पंक्तियाँ हैं आपकी ......बहुत सुंदर ...बहुत बधाई
बहुत सुन्दर चोका. मन को गहरे छू गए भाव. बधाई.
बहुत सुन्दर चोका...बधाई..|
बहुतखूब लिखा है चोका...भावना जी बधाई
कृष्णा वर्मा
प्रेम को लाजवाब खूबसूरत शब्दों में पिरोया है ... सच में चोका है ...
बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर
:-)
बहुत सुंदर चौका है बधाई.
सादर,
अमिता
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