शशि पुरवार
1
था दुःख को तो जलना
अब सुख की खातिर
है राहो पर चलना ।
2
रिमझिम बदरा आए
पुलकित है धरती
हिय मचल मचल जाए । .
3
है
मन जग का मैला
बेटी को मारे
पातक दर-दर फैला ।
4
इन कलियों का खिलना
सतरंगी सपने
मन पाखी- सा मिलना ।
5
थी जीने की आशा
थाम कलम मैंने
की है दूर निराशा ।
6
अब काहे का खोना
बीते ना रैना
घर खुशियों का कोना
।
7
भोर सुहानी आई
आशा का सूरज
मन के अँगना लाई।
8
पाखी बन उड़ जाऊँ
संग तुम्हारे मैं
गुलशन को महकाऊँ ।
5 टिप्पणियां:
शशि जी ! आशा - निराशा के बीच झूलते मानव मन में उठने वाले विचारों को आप ने जिस खूबसूरती से इन रचनाओं में पिरोया है, उसके लिए आपको हार्दिक बधाई !
बहुत सुन्दर माहिया...बधाई...|
प्रियंका
रिमझिम बदरा आए
पुलकित है धरती
हिय मचल मचल जाए । .
उच्छवास को कागज़ पर उकेरते सुंदर माहिया। बधाई शशि जी !
तहे दिल से अभार सभी मित्रो को ,जिन्होने महिया को पसद किया और प्रोत्साहित किया .
कम्बोज जी सन्धु जी तहे दिल से अभार
shashi ji apke sabhi mahiya vividh - mukta sajaye hue hain. badhai
pushpa mehra.
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