ताँका
सतीशराज पुष्करणा
1
सावन माह
आया समय पर
हुआ क्या लाभ ?
अगर झूमकर
पानी नहीं बरसा।
2
सागर क्या है
वो क्या जान पाएगा,
आज तक जो
बाहर नहीं आया
आँगन के कुएँ से ।
3
उन्हें कोई भी
पकड़ लेगा कैसे
वो तो आज भी
काफ़ी लम्बे -चौड़े हैं
क़ानून के हाथों
से ।
4
बादल आया
बूँदों को बरसाने
किसने फोड़ा
नाराज़ बादल को
बहा दिए शहर ।
5
बूढ़े चाँद की
नीयत ज़रा देखो-
देखा करता
उनके चेहरे को
बादलों की ओट से ।
6
सब वही है
पर क्या कहें हम
पापा के जाते
सूर्य -सी रौशन माँ
अब रात हो गई ।
-0-
9 टिप्पणियां:
" सब वही है
पर क्या कहें हम
पापा के जाते
सूर्य -सी रौशन माँ
अब रात हो गई । "
- अति सुन्दर !
डॉ पुष्करणा जी के सभी तांका अति सुन्दर, अनुभवों से लबालब।
मैं भी एक अनुभव बाँट रहा हूँ :
" माँ क्या गई ?
पापा तो बिखर गए
आँखें निस्तेज
खोये खोये से रहें
कभी कुछ न कहें। "
बहुत सुंदर बिम्ब ...! भावपूर्ण, अर्थपूर्ण ताँका !
~सादर!!!
सभी रचनाएं ह्रदयस्पर्शी हैं पर ये तो नैन छलका गई -
सब वही है
पर क्या कहें हम
पापा के जाते
सूर्य -सी रौशन माँ
अब रात हो गई ।
बधाई |
सब वही है
पर क्या कहें हम
पापा के जाते
सूर्य -सी रौशन माँ
अब रात हो गई ।
बेहतरीन ताँका....डा० सतीशराज पुष्करणा जी को हार्दिक बधाई!
सुन्दर, भावपूर्ण तांका के लिए बधाई...|
प्रियंका
सब वही है
पर क्या कहें हम
पापा के जाते
सूर्य -सी रौशन माँ
अब रात हो गई ।
bahut khoob bhav aur sach bhi
aapka ek ek tanka bahut hi sunder hai
bahut bahut badhai
rachana
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
सब वही है
पर क्या कहें हम
पापा के जाते
सूर्य -सी रौशन माँ
अब रात हो गई ।....मर्मस्पर्शी !!
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
ये बेहतरीन...
सब वही है
पर क्या कहें हम
पापा के जाते
सूर्य -सी रौशन माँ
अब रात हो गई ।
सभी ताँका बहुत भावपूर्ण, सतीशराज जी को हार्दिक बधाई.
बूढ़े चाँद की
नीयत ज़रा देखो-
देखा करता
उनके चेहरे को
बादलों की ओट से ।
सभी ताँका बहुत भावपूर्ण, सतीशराज जी को हार्दिक बधाई.
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