मंजु मिश्रा
1
कहाँ
हो कान्हा
अब
आ भी जाओ ना
काटे
न कटें दु:ख,
इस
धरा के
अब
तुम्हारे बिना
ले
ही लो अवतार
2
मैंने
तुमको
जब
-जब परखा -
तुम
निकले काँच,
दोष
ये मेरा
या
फिर था तुम्हारा
कि तुम हीरा न थे ।
3
आओ
कर दूँ
सुबह
और शाम
सब
तुम्हारे नाम,
फिर
बनाएँ
सपनों
की तस्वीर
नाम
रखें ज़िंदगी ।
4
कुछ सपने
घूँट
भर ज़िंदगी
एक
दिल, दो आँसू,
बस
हो गई
प्यार
की शुरुआत
अंजाम
ख़ुदा जाने ।
5
आ
समेट लूँ
अपनी
निगाहों में
फिर
कहीं भी रहे,
मेरा
रहेगा
धड़केगा
साँस- सा
मेरी
धड़कनों में ।
6
मै
और तुम
नदिया
के किनारे
साथ
चलेंगे सदा,
रहेंगे
दोनों
एक
दूजे से दूर
नियति
जो ठहरी !
7
मै
आईना हूँ
मुझमे
झाँकोगे तो
ख़ुद
को ही पाओगे,
जो
भी करना
सोच
-समझकर ,
छुप
नहीं पाओगे ।
-0-
6 टिप्पणियां:
मैंने तुमको
जब -जब परखा -
तुम निकले काँच,
दोष ये मेरा
या फिर था तुम्हारा
कि तुम हीरा न थे ।
वाह बहुत सुंदर सेडोका ... सभी रचनाएँ गहन भाव लिए हुये ...
सुंदर - भावपूर्ण सेदोका के लिए बधाई .
मैंने तुमको
जब -जब परखा -
तुम निकले काँच,
दोष ये मेरा
या फिर था तुम्हारा
कि तुम हीरा न थे ।
बहुत भावपूर्ण सेदोका, मंजू जी को बधाई.
मैंने तुमको
जब -जब परखा -
तुम निकले काँच,
दोष ये मेरा
या फिर था तुम्हारा
कि तुम हीरा न थे ।
मंजू जी उमदा सेदोका के लिए बधाई।
3
बेहतरीन सेदोका...। बधाई...।
प्रियंका
आओ कर दूँ
सुबह और शाम
सब तुम्हारे नाम,
फिर बनाएँ
सपनों की तस्वीर
नाम रखें ज़िंदगी ।...समर्पण और जीवन का सुन्दर भाव ..बधाई
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