कृष्णा वर्मा
1
घुमेर सी
मैं
सोचों के
भँवर में
नाची, जानी ना
नट सा
रस्सी पर
चलना ही
जीवन।
2
जीवन लगे
कोई गहरा
मर्म
जीवन
भर
चाह के
न सुलझी
गुत्थी है
जो उलझी।
3
जीवन मात्र
मृत्यु की
अमानत
उधारी साँसें
लिखा,न
मिट पाता
फेंको जितने
पासे।
4
चलें तो
कष्ट
देता यह
जीवन
रुकें हों
नष्ट
सहने को
यातना
होना होगा
अभ्यस्त।
5
तम से
भरी
जीवन की
कोठरी
हो दीप्तिमान
कभी ढूँढ
ना पाई
ऐसी दिया
सिलाई।
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