डॉ• ज्योत्स्ना शर्मा
1
सागर क्यूँ खारा है ?
मीठी सी नदिया
तन - मन सब वारा है ।
2
कब पास हमारे थे ?
जो दिन रैन बहे
वो आँसू खारे थे ।
3
काँटों से ये कलियाँ
कहतीं-झूमेंगे
हम मस्ती की गलियाँ ।
4
तुम जान न पाओगी
छलिया है मौसम
देखो ,मुरझाओगी ।
5
मन यूँ ना मुरझाना
बीत गईं खुशियाँ
गम को भी टुर जाना ।
14 टिप्पणियां:
वाह...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
सुन्दर अभिव्यक्ति
कब पास हमारे थे ?
जो दिन रैन बहे
वो आँसू खारे थे ....वो आंसू खारे ही थे..बहुत खारे..
सुन्दर प्रस्तुति आभार.
बहुत सुंदर रचना |
इस समूहिक ब्लॉग में आए और हमसे जुड़ें :- काव्य का संसार
यहाँ भी आयें:- ओ कलम !!
कब पास हमारे थे ?
जो दिन रैन बहे
वो आँसू खारे थे ।..... सुन्दर माहिया !
डॉ सरस्वती माथुर
वाह! ज्योत्सना जी | गहरी अभिव्यक्ति |
सुन्दर त्रिवेणियाँ...
:-)
वाह..बहुत सुंदर..
सुन्दर माहिया बहुत खूब
सागर क्यूँ खारा है ?
मीठी सी नदिया
तन - मन सब वारा है ।
Bahut gahan abhivyakti ki dhaara bah rahi hai ismen ...badhai...
आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)जी ,VermaKrishna जी ,Arvind Jangid जी ,काव्य संसार ,डॉ सरस्वती माथुर जी ,शशि पाधा जी ,Reena Maurya जी ,रश्मि जी ,
Rajesh Kumari जी एवं Dr.Bhawna जी ....आपके उत्साह वर्धक बोल अनमोल निधि हैं मेरी ..ह्रदय से आभार आप सभी का !
बहुत प्यारे माहिया हैं...बधाई...।
प्रियंका
बहुत बहुत धन्यवाद ...प्रियंका जी
साभार ..ज्योत्स्ना शर्मा
सभी माहिया एक से बढ़कर एक किसी एक को चुनना बहुत ही मुश्किल ! ज्योत्सना जी बहुत ही सुंदर लिखती हैं विधा कोई भी हो !
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