शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012

सात जनम लूँगी


डॉ सरस्वती माथुर
1
मौसम अलबेला है
अब तो आ जाओ
मिलने की बेला है l
2
डोले नभ में बादल
मन की आँखों में
बस यादों का काजल l
3
तुम भूल मुझे जाना
सात जनम लूँगी
है तुमको ही पाना l
4
हैं सपने रंगीले
नींदें पी -पी के
अब तक भी हैं गीले l
5
है कोरा कागज -मन
आकर लिख जाओ
जीवन में अपनापन l
6
मेहँदी का रंग हरा
लाली प्रीत भरी
नैनो में प्यार भरा l
7
है मेरा दिल खाली
बगिया का मेरी
है तू ही तो माली
8
तुम बन जुगनू आओ
रातों को मेरी
आलोकित कर जाओ
9
तुम धारा मैं नदिया
मुझ तक आने में
कितनी बीती सदियाँ
10
आँखें मेरी पुरनम
तुम हो यादों में
कब होगा अब संगम
11
है माथे पर बिंदिया
काजल आँखों में
खोयी मेरी निंदिया l
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8 टिप्‍पणियां:

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

हैं सपने रंगीले
नींदें पी -पी के
अब तक भी हैं गीले
सुन्दर माहिया के लिए बधाई...।
प्रियंका

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

बहुत मोहक ,रस से परिपूर्ण माहिया ...
बधाई .. सरस्वती जी

Rajesh Kumari ने कहा…

वाह वाह सरस्वती माथुर जी बहुत ही प्यारे माहिया करवाचौथ के अवसर पर बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं

शशि पाधा ने कहा…

सुन्दर,भावपूर्ण अभिव्यक्ति बधाई सरस्वती जी |

Krishna Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर सरस माहिया।
सरस्वती जी बधाई।

बेनामी ने कहा…

आप सभी के स्नेह भरे कमेंट्स के लिए बहुत- बहुत आभार !
डॉ सरस्वती माथुर

shashi purwar ने कहा…

namaskaar saraswati ji

sabhi mahiya dil ko chu gaye raspurn mahiya ,
ab dole hai jiya :) badhai

संध्या सिंह ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........कितने सरस माहिया .....

हैं सपने रंगीले
नींदें पी -पी के
अब तक भी हैं गीले l
अति उत्तम