माहिया (कृष्णा वर्मा)
1
जग
चेतन मेला है
भीड़ भरी राहें
हर पथिक अकेला है ।
2
दो
पात चिनारों के
नारी
जनम लिया
चलना
अंगारों पे ।
3
पेड़ों
पर पात नहीं
मौसम
रुख बदले
फूलों
की बात नहीं ।
4
जीवन
में फूल खिलें
तन-मन महकेगा
जब
अपने आन मिलें ।
5
फूलों
संग काँटे हैं
राहें
पथरीली
दुख-सुख मिल बाँटे हैं ।
6
दुख
की काली रातें
लगतीं
पूनम -सी
जो
साजन आ जाते ।
7
मन
चंचल होता है
माटी
बिन कैसे
दुख-सुख बो लेता है ।
8
पग-पग पे लोग छलें
रश्क
भरी बाती
नफरत
का तेल बले ।
9
चालाक ज़माना है
भरसक
यतन करे
पर
समय सयाना है ।
-0-
3 टिप्पणियां:
बहुत गहरे अर्थ लिए सुन्दर माहिया ...
मन चंचल होता है
माटी बिन कैसे
दुख-सुख बो लेता है ।......चमत्कृत करता है ...बहुत बधाई !!
मन चंचल होता है
माटी बिन कैसे
दुख-सुख बो लेता है ।
kitni sunder baat kahi kamal ki upma
badhai
rachana
जग चेतन मेला है
भीड़ भरी राहें
हर पथिक अकेला है ।
क्या खूब...बधाई...|
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