-डॉ भावना कुँअर
मासूम
परी
जो जीना
चाहती थी,
बनी
शिकार
वहशी दरिन्दों
का
जूझती
रही
जिंदगी व
मौत से
लड़ती
रही,
आखिरी तक
खामोश थी
ज़ुबान
कह रही
थीं
मासूम वो
पलकें
अनकही सी
दर्द -भरी
कहानी
छोड़ रहा
था
शरीर अब
साथ
बुलंद
रहा
हौसला
जीवन का
बुझ ही
गई
जीवन की
वो जोत
गूँजने
लगी
माँ की
भी सिसकियाँ
कुचले
देख
नन्हीं
परी के पंख ।
सूना हो
गया
पिता का
वो आँगन
चहकती थी
सोन
चिरैया जहाँ।
आँसू से
भरी
आँखिया
निहारती
सूनी
कलाई
कानों
में गूँजती हैं
बेबस
चीखें
दर्द और
पुकार।
चारों
तरफ फैला
सहमा हुआ
आँसुओं
का सैलाब
कैसी
ज़ुदाई,
अपनी
जमीं फिर
खून से
है नहाई।
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13 टिप्पणियां:
बहुत ही भावप्रवण, मर्म कॊ छूता चोका ! अति सुंदर।
मर्म कॊ छूता चोका !भावना जी बहुत अच्छा चोका ! आज सभी का दिल उदास है, मेरी कलम भी खून के आंसू रो रहीं हैं !
डॉ सरस्वती माथुर
भावना जी आँखें नम कर दीं ....
uf sajiv chitran
rachana
मर्मस्थल बेंधती भावपूर्ण रचना।
भावना जी बधाई।
Aansuon me bheegi shraddhanjali !
Manju
manukavya.wordpress.com
दामिनी की व्यथा व्यक्त करते हुए सुंदर चौका .
कटु सत्य व्यक्त करता चौका । ये व्यथा संपूर्ण स्त्री जाति की व्यथा है। आज सभी जुड़ सके क्योंकि ये दर्द सभी के अन्दर प्रवाहित हुआ।
भावों भरा और कटु सत्य व्यक्त करता सुन्दर चौका ।
भावनाजी आपकी रचना ने रुला दिया |
बहुत मार्मिक...|
बहुत मार्मिक !
आपकी रचनाएँ दिल की गहराई तक उतर जातीं हैं भावना जी !
~सादर!!!
Aap sabka bahut2aabhaar, ye dard hi kuch aisa hai ki jo dilodimaag par chhaakar uthal-puthal kar gaya,jo dard dil tak pahuch jaaye vo rulaata to hai hi..kalam bhi ro jaati hai...kaash aisa na hua hota...
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